डर कर छुप जाऊं कहीं,
या बन पक्षी उड़ जाऊं,
जाऊं आस्मां के उस पार,
जहाँ न कोई मुझे पहचाने,
न मैं किसी को ।
या सब को ख़ुद में समेट लूँ,
सब मुझमें समां जायें,
और मैं सब का प्रतीबिम्ब बन जाऊं ।
एक ज़ोर का तूफ़ान आए,
हम सभी को अपने साथ बहा ले जाए,
कुछ ऐसे मिला दे हमें एक साथ,
चाह कर भी अलग न हो पाएं,
यूँ बंध जायें साथ,
कोई दूसरा तूफ़ान भी उस बंधन को न तोड़ पाये ।
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3 comments:
hmmmmmm after stories, personal experiences, fakir-rasputin posts and poems now u came up with short poems ................
good going and good work.....:)
I liked this poem.. very much different one....
@anu
thnx for appreciation!!!..:)
@manish bhaiya
glad that you liked it bhaiya!!..:)
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