इस धुंद में जो पानी की बूँदें छिपी है,
इंतज़ार तो करो,
धुंए की आग भी भरकेगी,
धुंद की बूँदें भी बारिश बन बरसेंगी ।
छोर दो धुंए को,
उसको अपने अस्तित्व की तलाश है,
धुंद को निखरने दो,
उसे बारिश बनने की आस है ।
जो छुपा है उसे क्युं खोजना चाहते हो,
वो उनका स्वरुप है,
उनको पहले वो बन जाने दो,
फ़िर देखना,
एक आग ऐसी लगेगी,
बर्फ की सिहरन भी उसके सामने कमज़ोर परेगी,
बारिश यूं आएगी,
पूरी धरती को भिंगो जायेगी ।

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