Dec 31, 2008

आओ एक कहानी सुनाता हूँ!

हाँ तो, कहानी ऐसे शुरू हुई,

एक रोज़, सुबह के कुछ बजे, मुर्गे ने बांग भी नही दी थी तभी, एक पागल सा दिखता बूढा व्यक्ति सूरज की पड़ रही, उन अभी अपूर्ण रूप से विकसित किरणों में, हमारे घर के आगे जो गली है उसमें कुछ ढूंढ रहा था

मुझे उसकी मानसिक स्थिति ठीक नही लगी तो मैंने सोचा कि जा कर उसकी मदद कर दूँ

मुझे देख बूढे को जाने क्या हुआउसने आकर मेरे हाँथ को ज़ोर से पकड़ लियाऐसा होने की कोई उम्मीद नही होने कि वजह से मैं थोड़ा घबरा गया था।

बूढे ने मुझे हँस के देखा और कहा कि वो मुझे हीं ढूंढ रहा थाये सुन मुझे बरा आश्चर्य हुआमैं तो उसे जानता भी नहीं था
मेरा चेहरा देख उसे समझ में गया कि मैं क्या सोच रहा हूँ

उसने कहा कि बहुत दिनों से उसने किसी से बात नहीं की थीउसे एक इंसान चाहिए था जो उसके दिल की बात सुन सकेकहते कहते उसकी आँखें भर आई
मैंने उन्हें गले लगा लियाउनकी सूनी आँखों में वो अश्रु धार मानों रेगिस्तान में एक नदी के समान थी
फ़िर मैं उन्हें अपने घर ले आया

सूरज की रौशनी के बढ़ते स्वरुप को देखते हुए चाय की चुस्कियां भरी
इस दौरान उन्होंने मुझसे कुछ कहा मैंने उनसे

उनकी जो बात थी शायद उनके आंसूओं के साथ बह गई
अब हम रोज़ सुबह मिलते हैं, साथ बैठ कुछ बातें करते हैं और चाय पीते हैंउन्हें अपने अकेलेपन का एक साथी मिल गया और बिन मांगे भगवान् ने इस अनजाने शेहेर में मुझे एक अपना सा अभिभावक दे दिया।

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