Jan 3, 2009

पापा, एक बार....

पापा, एक बार पलट कर फ़िर से देखो न,
मैं वैसा नहीं,
जैसा दिखता हूँ।

पापा ऐसा कभी नहीं चाहा मैंने,
की तुम्हें चोट पहुचे,
पर पापा मन् थोरा नादान था,
वो बेहेक गया,
जाने कैसे उसने एक ऐसी राह ले ली,
जो तुम नहीं चाहते थे,
पर अब तो मैं वापिस आ गया हूँ,
तुम्हारे साथ चलना चाहता हूँ,
पापा, फ़िर भी ऐसा क्यूँ लगता है की,
तुम मुझे अभी भी वैसे हीं देखते हो।

बचपन में तुमने मेरी सारी गलतियाँ माफ़ की है न पापा,
आज क्या मैं इतना बरा हो गया,
तुम माफ़ क्यूँ नहीं कर पा रहे मुझे पापा?

बरा होना अगर ऐसा था,
तो मुझे कभी भी बरा नहीं होना था,
मुझे अभी भी मेरे घोरे की सवारी करनी है,
जो कभी भी थकता नहीं था,
मुझे मेरे पापा चाहिए जो मुझे कुछ भी ला देते थे,
कभी डांटते,
फ़िर प्यार से गले लगा लेते।

पापा, तुमने एक बार मुझे मारा था,
फ़िर रात भर मेरे बगल में बैठे थे,
मुझे मनाते,
आज क्यूँ नहीं मना लेते मुझे,
क्यूँ नहीं बैठते मेरे पास आ कर?

क्या करूंगा मैं बरा हो कर पापा,
मुझे बस आपका बेटा बनना है,
और किसी से क्या लेना देना?

पापा एक बार पलट कर फ़िर देखो न,
मैं बरा नहीं हुआ,
मैं वही हूँ, आपका छोटा बेटा,
जिसके घुंघराले बालों में आपकी उँगलियाँ फस जाया करती थी,
जिसके नाखूनों को आप बरे प्यार से काटते थे,
जिसके पैर गंदे होने पर,
आप उन्हें ख़ुद साफ़ कर दिया कर देते थे।

पापा ज़िन्दगी से लरते लरते,
पता नहीं कहाँ खो गया मैं,
खोज लो न मुझे पापा,
बुला लो न मुझे,
देखो न, मेरे बाल उलझ गए हैं,
कितने गंदे हो गए हैं मेरे ये नाखून,
आ जाओ न पापा,
ले जाओ न मुझे।

पापा, देखो न एक बार पलट कर,
मैं वैसा नहीं,
जैसा दिखता हूँ।

1 comment:

Anonymous said...

दिल को छू गयी। हिन्दी में और भी लिखिये।

First Guest Post: RANDOMLY ACCURATE!

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